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आइये, इस आर्टिकल के माध्यम से कुछ व्यक्तिगत और पारदर्शी बातचीत करें | यह लेख मैं इंग्लिश में भी लिख सकता था लेकिन जानबूझकर मैंने इसे हिंदी में ही रखा है |

बड़े-बड़े ज्ञान देने वाली बातें नहीं लिखूंगा – मैं अपने अनुभव के आधार पर कुछ ऐसी बातें शेयर करूंगा जिसके सहारे आप अपने कॉन्टेक्स्ट में कुछ बिखरे हुए बिंदुओं को जोड़ सकें

सर्वप्रथम; ज्यादातर हमें इस बात की कंडीशनिंग मिली होती है कि जब हम अपने सहकर्मियों के साथ हो या किसी नेटवर्किंग मीटिंग में किसी अजनबी के साथ बातचीत के माध्यम से हम ज्यादा स्मार्ट नजर आने चाहिए – हम इसी उद्देश्य के साथ बातचीत करते हैं | जबकि सच तो यह है कि हमें अपने आप को खुलकर प्रस्तुत करना चाहिए; तब भी जब हम कमज़ोर या हारे हुए लगें – सभी के साथ ऐसा होता है | 

मैंने लिंक्डइन पर ही दो-तीन साल पहले मिड-कॅरियर में “वूडन सीलिंग सिंड्रोम” के विषय में लिखा था | (ग्लास सीलिंग में हम आगे देख तो सकते हैं लेकिन वहां तक पहुंच नहीं पाते | करियर में वुडन सीलिंग दर्शाता है एक ऐसा क्षण जब हम ना तो आगे देख पाए और ना आगे बढ़ पाएँ |

मेरे साथ करियर में वुडन सीलिंग वाली स्थिति तो नहीं आई लेकिन कुछ विरोधाभासों के कारण यह इतना आसान भी नहीं रहा – उदहारण के लिए

  • जब मैं हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट से बिजनेस मैनेजमेंट की ओर माइग्रेट करना चाहता था तब बिजनेस मैनेजमेंट एकेडमिक कम्युनिटी ने मुझे इतनी आसानी से स्वीकार नहीं किया था | उन्हें लगता था कि मैं एक हॉस्पिटैलिटी प्रोफेशनल हूं | क्या हॉस्पिटैलिटी एक बिजनेस नहीं है ?
  • मुंबई के एक बड़े नाम वाले कॉलेज की सेलेक्शन कमिटी ने मुझे इसलिए स्वीकार नहीं किया क्योंकि हमारे मत भिन्न थे | उन्हें एक स्पेशलाइजेशन वाला व्यक्ति चाहिए था जबकि मेरा मत था कि एक बिजनेस अच्छी तरह चलाने के लिए जनरलाइजेशन की आवश्यकता होती है | एकेडेमिक सिस्टम का डिज़ाइन धरातल की वास्तविकता के अनुरूप नहीं है
  • मुंबई के एक अन्य बिजनेस मैनेजमेंट कॉलेज के ऑपरेशन मॉडल में कानूनी खामियां थी क्योंकि वे आसाम की यूनिवर्सिटी की डिग्रियां मुंबई में बांटने का धंधा कर रहे थे – और जिस दिन मुझे इसकी जानकारी लगी उसी दिन मैंने तेजी से री-प्लान करके अपने आप को उस गैर कानूनी संस्था से अलग कर लिया |

मिड कैरियर आते-आते हम सब एक तरह का अंदरूनी संघर्ष या कनफ्लिक्ट का अनुभव कर सकते हैं | ये जीवन-मूल्यों के कारण हो सकते हैं या दूरदर्शिता के कारण भी जैसा मेरे साथ एक अन्य इंस्टीट्यूशन में हुआ (जिन्होंने 2 साल के अंदर अंदर 180 मैनेजमेंट कॉलेज खोल लिए थे और सभी को एक सेंट्रल मैनेजमेंट सिस्टम के द्वारा कंट्रोल करना चाहते थे | मुझे समझ में आ गया था कि यह एसेम्बली लाईन वाला मॉडल टिकने वाला नहीं है और दो-तीन साल के अंदर उन्हें सभी 180 कॉलेज बंद करने पड़े )

कुछ उन्हें पसंद नहीं आएगा – कुछ आपको 

आदर्शों और दूरदर्शिता के साथ चलते हुए कुछ योगदान करने की व्याकुलता में मैंने एक निर्णय ले लिया – एजुकेशन सिस्टम से बाहर आकर “कुछ करने” का – लेकिन यह इतना आसान नहीं था – और शायद मैं आज भी यह नहीं कह सकता कि मैं पूरी तरह सफल हो गया हूं; कम से कम प्रोफेशनल मापदंडों पर | (इन सब के साथ मैंने कैसा समय और क्या क्या देखा होगा – यह एक अलग आर्टिकल या सेशन में डिस्कस करेंगे )

लेकिन इस तरह के बदलाव भावनात्मक परिवर्तन होते हैं जो तीन से आठ साल ले सकते हैं | ये परिवर्तन, रॉबर्ट कियोसाकि के शब्दों में, E/S क्वाड्रेंट से B/I क्वाड्रेंट को ओर ले जाने वाले होते हैं – देखे जा सकने वाले बाहरी बदलाव के पहले आते हैं व्यक्ति के अंदर गहरे परिवर्तन – इसी परिवर्तन के चलते मुझे आज साहस मिला कि मैं आपके साथ खुलकर चर्चा कर सकूं

B क्वाड्रेंट अर्थात बिजनेस क्वाड्रेंट में सबसे ज्यादा ज़रूरत पड़ती है क्रिएटिविटी की – क्रिएटिविटी सिर्फ कलात्मक नहीं है | क्रिएटिविटी का संबंध है संभावनाओं यानि पोटेंशियल को देख पाने से | संभावनाओं को देख पाने के लिए एक दूरदर्शी और पेनी नजर चाहिए होती है ताकि हम समझ सके कि ऐसी कौन सी समस्याएं हैं जिन को सुलझाने से लोगों का जीवन थोड़ा सरल होगा; उनका जीवन स्तर थोड़ा ऊपर आएगा; और फिर जुट जाना पड़ता है उस समस्या का समाधान डिवेलप करने के लिए; लोगों तक पहुंचने के लिए |

आज पीछे मुड़कर देखने से मुझे अब समझ में आता है कि शायद एजुकेशन सेक्टर में अपने करियर के दौरान मैं ‘आउट ऑफ़ प्लेस” क्यों अनुभव करता रहा – मैं आउट ऑफ प्लेस इसलिए फील करता था क्योंकि मैं B क्वाड्रेंट मैं अच्छी तरह काम कर सकता हूं E या S क्वाड्रेंट में नहीं | (सटीक शब्दों में मुझे यह रियलाइज़ तब हुआ जब मैंने डेढ़ साल पहले पीटर ड्रकर की यह किताब पढ़ी – मैनेजिंग वनसेल्फ )

यह इतना आसान नहीं है 

जब मेरे कुछ पुराने प्रोफेसर मित्र यह पूछते हैं कि क्या उन्हें भी एंटरप्रेन्योरशिप के रास्ते पर आना चाहिए तो मैं उन्हें यही उत्तर देता हूँ – हाँ भी और ना भी | हाँ; क्योंकि पोटेंशियल और इच्छा तो हम सभी के अंदर होती है; लेकिन ना इसलिए क्योंकि उद्यमिता का निर्णय सुदृढ़ता के साथ लिया गया एकतरफा निर्णय होना चाहिए; जैसे इंग्लिश में एक कहावत है – Burning the bridge – उद्यमिता के रास्ते में हमें अपना सारा अहंकार ,सारी सेल्फ-डेफिनेशंस और डिग्रियां एक तरफ रख कर मेहनत करना पड़ती है और इस प्रोसेस में परिणाम आने में 5-7 या 10 साल तक लग सकते हैं |

और इस रास्ते पर हमें कई नए स्किल्स सीखने पढ़ सकते हैं उदाहरण के लिए मैंने लेखन की गहराइयां समझी; माइक्रोसॉफ्ट वर्ड में गहरे छिपीं कई फंक्शनैलिटीज को समझा; फोटोशॉप सीखा, वीडियो एडिटिंग के कई सॉफ्टवेयर सीखे, वेबसाइट मैनेजमेंट की बारीकियां सीखी और न जाने क्या क्या …

ये आर्टिकल लंबा हो रहा है लेकिन फिर भी यह महत्वपूर्ण बात मैं छोड़ नहीं सकता – इस दौरान हमें लगातार मेंटरिंग यानी मार्गदर्शन भी लेते रहना पड़ता है – एक बच्चे की तरह … | हमारी प्रोफेशनल और फाइनेंशियल सफलताएं किसी भी स्तर की रही हो; कोई तो है जो हमसे ज्यादा समझदार और सफल है | यदि व्यक्तिगत रूप से नहीं तो किताबें पढ़-पढ़ कर ! मार्ग दर्शन लेते रहना हमारे लिए ऑक्सीजन की तरह आवश्यक होता है |

अपने संघर्ष और परेशानियों के विषय में ईमानदारी से विस्तार में चर्चा करना और जब जरूरत पड़े तो लोगों से मदद मांगना – ये दोनों काम हम प्रोफेशनल्स के लिए थोड़ा कठिन हो सकते हैं | (और सच कहूं तो बहुत कठिन होते हैं) और इस तरह के आंतरिक “जीर्णोद्धार” के लिए कोई टेक्निक या शॉर्टकट है भी नहीं – किताबें, ब्लॉग या आर्टिकल्स पढ़कर ये नहीं होता – ये होता है सिर्फ ऑर्गेनिक तरीके से – धीरे धीरे .

शेयर करें – अपने संघर्ष की कहानी, अपना काम 

जब आप इस प्रोसेस में रहें उस दौरान (स्पैमिंग लिए बगैर) अधिक से अधिक शीयर करें; आत्मविश्वास के साथ शेयर करें, ईमानदारी के साथ शेयर करें | अपने काम के सेम्पल्स और विचार शेयर करें – और निश्चिंत रहें इसी प्रोसेस में आपको नए सच्चे साथी मिलने लगेंगे | (उदहारण के लिए और आपको प्रोत्साहित करने के लिए – मैं ये वीडियो शेयर कर रहा हूँ जो मैंने अप्रैल 2018 में एक सीरीज़ के लिए बनाया था)

मिड-कॅरिअर क्राइसिस सकारात्मक भी हो सकते हैं | नमस्ते|

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